
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के 30 वैज्ञानिकों के एक दल ने सरकार को ‘एंग्स्ट्रॉम-स्केल’ चिप विकसित करने का प्रस्ताव दिया है। ये इस समय तैयार हो रहे सबसे छोटे चिप से भी छोटे हैं। इस दल ने सरकार को ‘2डी मटेरियल’ नामक सेमीकंडक्टर सामग्रियों के एक नए वर्ग का इस्तेमाल करके प्रौद्योगिकी विकसित करने का प्रस्ताव दिया है। इसके जरिये इस समय वैश्विक उत्पादन में सबसे छोटे चिप के 10वें हिस्से जितना छोटा चिप बनाया जा सकता है। इस तरह सेमीकंडक्टर में भारत का नेतृत्व विकसित हो सकता है। इस समय सेमीकंडक्टर विनिर्माण में सिलिकॉन-आधारित प्रौद्योगिकियों का प्रभुत्व है। इसका नेतृत्व अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसे देश कर रहे हैं।
एक सूत्र ने पीटीआई को बताया, “आईआईएससी के वैज्ञानिकों के एक दल ने अप्रैल, 2022 में प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) को एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) सौंपी, जिसे संशोधित करके अक्टूबर, 2024 में फिर से पेश किया गया। बाद में रिपोर्ट को इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय के साथ साझा किया गया। इस परियोजना में एंग्स्ट्रॉम-स्केल चिप विकसित करने की बात कही गई है, जो आज तैयार हो रहे सबसे छोटे चिप्स से भी छोटे हैं।” डीपीआर में ग्रेफीन और ट्रांजिशन मेटल डाइचेलकोजेनाइड्स (टीएमडी) जैसी बेहद बारीक सामग्रियों का उपयोग करके 2डी सेमीकंडक्टर के विकास का प्रस्ताव है। इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (मेइटी) के सूत्रों ने पुष्टि की है कि इस प्रस्ताव पर चर्चा चल रही है।
एक अधिकारी ने कहा, “मेइटी इस परियोजना के बारे में सकारात्मक है। मेइटी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार और सचिव ने इस पर बैठकें की हैं। मेइटी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक्स अनुप्रयोगों की खोज कर रहा है, जहां इस तकनीक को लागू किया जा सकता है।” भारत इस समय सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए विदेशी कंपनियों पर बहुत अधिक निर्भर है। यह एक ऐसी प्रौद्योगिकी है, जो आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा, दोनों लिहाज से महत्वपूर्ण है। ताइवान के पीएसएमसी के साथ साझेदारी में टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स देश की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर परियोजना स्थापित कर रही है। इसमें 91,000 करोड़ रुपये का निवेश शामिल है। इस परियोजना को भारत सेमीकंडक्टर मिशन के तहत मंजूरी दी गई है और यह सरकार से 50 प्रतिशत पूंजी सहायता के लिए पात्र है। इसकी तुलना में, आईआईएससी के नेतृत्व वाले प्रस्ताव में अगली पीढ़ी के सेमीकंडक्टर के लिए स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए पांच वर्षों में लगभग 500 करोड़ रुपये की राशि देने का अनुरोध किया गया है। इस परियोजना में प्रारंभिक वित्तपोषण चरण के बाद आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक मसौदा भी दिया गया है।
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