
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) बुधवार को अपनी आगामी द्विमासिक मौद्रिक नीति में प्रमुख अल्पकालिक उधारी दर को लगातार तीन कटौतियों के बाद 5.5 प्रतिशत पर यथावत रख सकता है. विशेषज्ञों का यह कहना है. हालांकि, अमेरिका में शुल्क की बढ़ती अनिश्चितताओं और मुद्रास्फीति के कम होते रुझानों के मद्देनज़र निकट भविष्य में आर्थिक वृद्धि के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां हैं.
दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्रीय बैंक दरों में एक और कटौती कर सकता है क्योंकि वृद्धि के दृष्टिकोण के लिए चुनौतियां संभावित मुद्रास्फीति जोखिमों से ज़्यादा हैं. केंद्रीय बैंक पहले ही अल्पकालिक उधार दर (रेपो) में लगातार तीन बार कटौती कर चुका है, जो कुल मिलाकर एक प्रतिशत हो गई है.
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा, छह सदस्यीय दर-निर्धारण समिति – मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) – की अध्यक्षता करते हुए, बुधवार (छह अगस्त) को अगली द्विमासिक नीति दर की घोषणा करेंगे. एमपीसी की तीन दिवसीय बैठक सोमवार से शुरू होगी. बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि ऋण नीति जून में कम मुद्रास्फीति और 25 प्रतिशत अमेरिकी शुल्क के हालिया घटनाक्रमों पर आधारित नहीं होगी.
उन्होंने कहा कि नीति पहले ही जून में 26 प्रतिशत शुल्क को समाहित कर चुकी होगी, जिसेअप्रैल में टाल दिया गया था. सबनवीस ने कहा कि ऋण नीति जून में कम मुद्रास्फीति और 25 प्रतिशत अमेरिकी शुल्क के हालिया घटनाक्रमों पर आधारित नहीं होगी. उन्होंने कहा कि जून में, नीति पहले ही 26 प्रतिशत शुल्क को बफर कर चुकी होगी, जो अप्रैल में स्थगित दर थी.
सबनवीस ने कहा, “इसलिए, शुल्क अपने आप में वृद्धि के बारे में दृष्टिकोण को नहीं बदल सकता है. हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि आरबीआई इस संख्या को कैसे देखता है. वर्ष के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान में 0.1-0.2 प्रतिशत की मामूली कमी हो सकती है, यानी 3.7 प्रतिशत के बजाय 3.5-3.6 प्रतिशत.” हालांकि, इस समय कच्चे तेल की लागत पर भी विचार किया जाएगा.
उन्होंने कहा, “इसलिए, हमें इस बार रुख या नीतिगत दर में किसी बदलाव की उम्मीद नहीं है. मजबूत वृद्धि के मोर्चे पर कुछ राहत मिलने के साथ, रुख अधिक सतर्क रहेगा.” केयरएज रेटिंग्स ने कहा कि आरबीआई ने मुद्रास्फीति में कमी की उम्मीद करते हुए पहले ही ब्याज दरों में कटौती शुरू कर दी थी.