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टाटा संस के IPO का समय नजदीक, DRHP बनाने में लगेगा समय, RBI पर टिकीं निगाहें

टाटा संस इतना बड़ा है कि इसे आईपीओ के लिए डीआरएचपी तैयार करने में काफी समय लगेगा. जबकि आरबीआई के नियमों के मुताबिक, इसे अगले साल सितंबर तक बाजार में लिस्ट होना है.

  • Money9
  • Last Updated : November 13, 2024, 13:35 IST
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टाटा
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भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पब्लिक लिस्टिंग की समय-सीमा नजदीक आते ही टाटा सन्स पर सभी की नजरें टिकी हैं. दरअसल टाटा संस इतना बड़ा है कि इसे आईपीओ के लिए डीआरएचपी तैयार करने में काफी समय लगेगा. जबकि आरबीआई के नियमों के मुताबिक, इसे अगले साल सितंबर तक बाजार में लिस्ट होना है. ऐसे में विश्लेषकों का मानना है कि अगर अब आरबीआई मंजूरी देता है तो भी टाटा संस को आईपीओ लाने की तैयार में काफी समय लगेगा.

टाटा संस को आरबीआई के स्केल-बेस्ड रेगुलेशन (SBR) फ्रेमवर्क के तहत एक कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी (CIC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. समय सीमा के नजदीक आते ही, टाटा सन्स कथित तौर पर इस अनिवार्य लिस्टिंग आवश्यकता से बचने के तरीकों की तलाश कर रहा है. इसने अपने आरबीआई पंजीकरण को स्वेच्छा से सौंप भी दिया है. इस कदम ने कंपनी की नियामक रणनीति पर सवाल खड़े किए हैं और वित्तीय समुदाय में चिंताएं पैदा की हैं.

2022 में आरबीआई ने एसबीआर फ्रेमवर्क के तहत एक नया नियम सेट पेश किया, जिसका उद्देश्य बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के लिए बेहतर गवर्नेंस और पारदर्शिता सुनिश्चित करना था. “अपर लेयर” में वर्गीकृत टाटा सन्स को पब्लिक लिस्टिंग के लिए तीन साल का समय दिया गया था. इस समय सीमा को सितंबर 2025 में पूरा करना है. विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी बड़ी आईपीओ प्रक्रिया की तैयारी में कम से कम छह से आठ महीने लग सकते हैं.

कुछ रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि टाटा सन्स ने अपने बकाया कर्ज को चुका दिया है, जो शायद आरबीआई पंजीकरण छोड़ने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. यदि कंपनी इसमें सफल होती है, तो वह एसबीआर फ्रेमवर्क की लिस्टिंग आवश्यकता से मुक्त हो जाएगी, जिससे सार्वजनिक निगरानी और सूचीबद्ध कंपनियों के लिए आवश्यक पारदर्शिता मानदंडों का पालन करने की आवश्यकता नहीं रहेगी.

इस विवाद में एक अन्य पहलू टाटा ट्रस्ट्स के उपाध्यक्ष वेणु श्रीनिवासन की भूमिका है, जिनका टाटा सन्स में महत्वपूर्ण प्रभाव है. श्रीनिवासन जून 2022 से आरबीआई के केंद्रीय निदेशक मंडल में कार्यरत हैं. उनकी दोहरी भूमिका कुछ पर्यवेक्षकों के अनुसार एक स्पष्ट हितों के टकराव का मामला है. आरबीआई में उनकी स्थिति उन्हें उन प्रमुख नियामक निर्णयों पर प्रभाव डालने की क्षमता देती है, जो सीधे टाटा सन्स के पक्ष में हो सकते हैं.

इस घटनाक्रम से अवगत एक व्यक्ति ने कहा कि कुछ शेयरधारक टाटा सन्स की लिस्टिंग का समर्थन कर रहे हैं. कंपनी की पिछली वार्षिक आम बैठक (AGM) में टाटा संस में 18.37 पर्सेंट के साथ दूसरे सबसे बड़े शेयरधारक शापूरजी पलोनजी समूह ने टाटा सन्स के आईपीओ को मजबूत समर्थन दिया. विश्लेषकों का अनुमान है कि 5% हिस्सेदारी बिक्री से भी 55,000 करोड़ रुपये से अधिक राशि इस आईपीओ से जुटाई जा सकती है.

यदि टाटा सन्स को लिस्टिंग से बचने की अनुमति मिलती है, तो इससे एसबीआर फ्रेमवर्क की “अपर लेयर” में शामिल अन्य कंपनियों के लिए भी यही करने की मिसाल बन सकती है, जिससे आरबीआई के नियामक उद्देश्यों पर असर पड़ेगा. इसमें एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस, बजाज फाइनेंस और एलएंडटी फाइनेंस सहित अन्य प्रमुख एनबीएफसी ने पहले से ही एसबीआर की लिस्टिंग आवश्यकता का पालन करने के लिए कदम उठाए हैं.

Published: November 13, 2024, 13:35 IST

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