
कृषि मंत्रालय ने हिंदू और जैन समुदायों की नैतिक और धार्मिक चिंताओं का हवाला देते हुए फसल की वृद्धि और उत्पादकता बढ़ाने के लिए उपयोग किए जाने वाले पशु स्रोतों से प्राप्त 11 जैव प्रोत्साहक तत्वों को दी गई मंजूरी वापस ले ली है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
पशु-आधारित प्रोटीन हाइड्रोलाइजेट से बने इन उत्पादों को पहले धान, मिर्च, टमाटर, कपास, खीरा, सोयाबीन, अंगूर और मूंग सहित फसलों पर इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी जा चुकी थी।
इस साल की शुरुआत में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने यह मंजूरी दी थी।
आईसीएआर के महानिदेशक एम एल जाट ने पीटीआई-भाषा को बताया, ”इन 11 जैव प्रोत्साहक (बॉयोस्टिमुलेंट्स) को पहले मंजूरी दी गई थी और ये बाजार में बिक रहे थे। अब विभिन्न पक्षों द्वारा उठाई गई नैतिक, धार्मिक और आहार संबंधी चिंताओं के कारण इन पर रोक लगा दी गई है।”
उन्होंने कहा कि जैव प्रोत्साहकों का इस्तेमाल तब तक निलंबित रहेगा, जब तक कि कटाई-पूर्व अंतराल के उचित आंकड़े तैयार नहीं हो जाते, जब इन उत्पादों का इस्तेमाल पत्तियों पर छिड़काव के लिए किया जाएगा।
जाट ने आगे कहा, ”इससे पहले उच्च पैदावार के संदर्भ में तकनीकी मंजूरी के आधार पर ही इन्हें मंजूरी दी गई थी।”
जैव उत्तेजक या प्रोत्साहक पदार्थों को भारत के उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ), 1985 के तहत विनियमित किया जाता है। इनका इस्तेमाल फसल की वृद्धि तथा उत्पादकता बढ़ाने के लिए किया जाता है।
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