
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा की याचिका पर 14 अक्टूबर को सुनवाई करेगा।
याचिका में मोइत्रा ने भारत में वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ), विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) और उनके मध्यस्थों के अंतिम लाभार्थियों एवं पोर्टफोलियो के सार्वजनिक खुलासे को अनिवार्य करने का अनुरोध किया है।
याचिका न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई।
मोइत्रा की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए विस्तृत अभिवेदन पर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) से प्राप्त जवाब दाखिल कर दिया है।
शीर्ष न्यायालय ने एक अप्रैल को मोइत्रा से इस मुद्दे पर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को एक विस्तृत प्रतिवेदन देने को कहा था।
भूषण ने कहा कि उन्होंने पिछले महीने सेबी से मिले जवाब पर भी अपना जवाब दाखिल कर दिया है।
पीठ ने कहा, ‘‘आप अपनी रिट याचिका में संशोधन करें।’’
भूषण ने याचिका में किए गए अनुरोध का उल्लेख करते हुए कहा कि अभिवेदन पर सेबी का जवाब समस्या का हल नहीं है।
उन्होंने कहा कि याचिका में संशोधन आवश्यक नहीं है क्योंकि अनुरोध वही रहेगा।
भूषण ने तर्क दिया कि सेबी ने अपने जवाब में कहा है कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के नियम इस मुद्दे से निपटते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ यह उत्तर हमारी मांग के अनुरूप नहीं है।’’
भूषण ने कहा कि अतिरिक्त हलफनामे के साथ प्रस्तुत दस्तावेज को उचित संशोधन आवेदन के माध्यम से रिट याचिका के ज्ञापन में शामिल किया जाएगा।
इसके बाद पीठ ने मामले की सुनवाई 14 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी।
गौरतलब है कि तृणमूल सांसद मोइत्रा का कहना है कि उनकी जनहित याचिका में भारत के वित्तीय बाजारों में पारदर्शिता एवं निवेशकों की जागरूकता बढ़ाने का अनुरोध किया गया है, जिसके तहत अंतिम लाभार्थी स्वामियों के विवरण के साथ-साथ एआईएफ और एफपीआई की पोर्टफोलियो होल्डिंग्स का सार्वजनिक खुलासा अनिवार्य किया जाए।
याचिका में कहा गया कि सेबी, भारत में प्रतिभूति बाजारों को नियंत्रित करता है और अपने अधिदेश के तहत, बोर्ड एआईएफ और एफपीआई के संचालन पर नजर रखता है।
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