
भारत ने 2025 में अपने कर ढांचे में व्यापक सुधार किया जिसमें माल एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में भारी कटौती और आयकर छूट शामिल है। अब ध्यान आगामी बजट में सीमा शुल्क में तर्कसंगत सुधार और प्रक्रियाओं को सरल बनाने पर है।
अगले वर्ष एक अप्रैल से नया सरलीकृत आयकर अधिनियम, 2025 लागू होगा जो छह दशक से अधिक पुराने, वर्तमान आयकर अधिनियम 1961 की जगह लेगा। साथ ही दो नए कानून, सिगरेट पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लगाने के लिए और पान मसाला पर जीएसटी दरों के अतिरिक्त शुल्क लगाने के लिए सरकार द्वारा तय की गई तिथि से लागू किए जाएंगे।
सरकार द्वारा 2025 में लागू किए गए कर सुधारों का उद्देश्य चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक वातावरण के बीच मांग को प्रोत्साहित करना था। शुल्क से जुड़ी अनिश्चितताओं के कारण आर्थिक निर्णय लेने पर असर पड़ने से भारत के कर सुधार उपायों ने घरेलू मांग बढ़ाने, उपभोग को प्रोत्साहित करने और वृद्धि का समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित किया।
इस साल एक प्रमुख विशेषता सितंबर 22 से लगभग 375 माल एवं सेवाओं पर जीएसटी दरों में कटौती रही जिससे सामान्य उपयोग की वस्तुओं पर कर का बोझ कम हुआ और लंबे समय से जारी उल्टी कर संरचनाओं (इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर) की चिंताओं का समाधान हुआ।
इसके अलावा चार-स्तरीय जीएसटी ढांचे (5, 12, 18 और 28 प्रतिशत) को दो मुख्य दरों पांच और 18 प्रतिशत में समेटना अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था को तार्किक एवं सरल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया।
जीएसटी में किए गए बदलावों का उद्देश्य अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था को सरल और अधिक पूर्वानुमानित बनाना था जिसमें कर की श्रेणियों की संख्या कम करना और मुकदमों को कम करना शामिल था।
संग्रह की दृष्टि से, अप्रैल में जीएसटी संग्रह ने रिकॉर्ड 2.37 लाख करोड़ रुपये को छुआ और चालू वित्त वर्ष 2025-26 में इसका औसत 1.9 लाख करोड़ रुपये रहा। व्यापक दर कटौतियों के कारण जीएसटी राजस्व पर कुछ दबाव बना, साथ ही वृद्धि दर धीमी हुई।
भारत में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) का संग्रह नवंबर में साल के निचले स्तर 1.70 लाख करोड़ रुपये पर आ गया। यह सालाना आधार पर केवल 0.7 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर्शाता है। नवंबर वह पहला महीना था जिसमें 22 सितंबर से प्रभावी जीएसटी दर कटौती का पूरा असर देखा गया।
प्रत्यक्ष कर के मोर्चे पर, सरकार ने आयकर छूट की सीमा बढ़ा दी है जिससे मध्यम आय वर्ग के करदाताओं को राहत मिली है और उपभोक्ताओं के हाथों में अधिक व्यय योग्य आय उपलब्ध हुई है। इस कदम को उपभोग को बढ़ावा देने वाला माना गया (विशेष रूप से शहरी परिवारों के लिए) साथ ही सरलीकृत कर व्यवस्था के तहत स्वैच्छिक अनुपालन को मजबूत करने वाला भी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा कि सीमा शुल्क का सरलीकरण सरकार का सुधार का अगला बड़ा लक्ष्य होगा। पारदर्शिता के संदर्भ में आयकर के गुणों जैसे कि ‘फेसलेस असेसमेंट’ को सीमा शुल्क में भी लागू करने और शुल्क दरों के युक्तिकरण को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
भारत जैसे-जैसे कर सुधारों के अगले चरण की ओर बढ़ रहा है और इसमें सरलीकरण, पूर्वानुमानशीलता तथा व्यापार करने में आसानी के नीतिगत लक्ष्य के केंद्र में रहने की उम्मीद है।
डेलॉयट इंडिया के साझेदार एवं अप्रत्यक्ष कर प्रमुख महेश जयसिंह ने कहा, ‘‘ व्यापार के बदलते स्वरूप, बढ़ती अनुपालन लागत एवं लगातार बनी हुई प्रक्रियात्मक बाधाएं सीमा शुल्क सुधारों के अगले चरण की आवश्यकता को दर्शाती हैं।’’
नांगिया ग्लोबल के अप्रत्यक्ष कर साझेदार राहुल शेखर ने कहा कि सीमा शुल्क प्रक्रियाओं के संपूर्ण डिजिटलीकरण पर जोर दिया जाना चाहिए जिसमें दस्तावेजीकरण में एकरूपता, पूर्वानुमानित वर्गीकरण पद्धतियां और जोखिम-आधारित त्वरित मंजूरी शामिल हैं जिससे व्यापार सुगमता एवं निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार राजस्व जुटाने और मुकदमेबाजी का बोझ कम करने के लिए पुराने सीमा शुल्क विवादों का एक बार में निपटान करने की योजना पर विचार कर सकती है।
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