
Small Cap Mutual Funds: जाने-माने लेखक और ग्लोबल इंवेस्टर रुचिर शर्मा ने साल 2025 के लिए अपने अनुमान में बताया है कि म्यूचुअल फंड कैटेगरी में स्मॉल कैप ज्यादा आकर्षक नहीं रहेंगे. हालांकि स्मॉल कैप फंड लार्ज और मिड कैप की तुलना में कम समय में ज्यादा रिटर्न देने के लिए जाने जाते हैं. यहां हम आपको बताएंगे कि क्या आपके पोर्टफोलियो में स्मॉल-कैप फंड्स जरूरी है? किस तरह के स्मॉल कैप फंड्स चुनना चाहिए, क्या होनी चाहिए निवेश की रणनीति, चलिए समझते हैं…
स्मॉल-कैप इक्विटी फंड्स उन निवेशकों के लिए आकर्षक हैं, जो लॉन्ग टर्म में अपने फाइनेंशियल टारगेट को हासिल करना चाहते हैं. लेकिन इस कैटेगरी में निवेश करना चैलेंजिंग होता है. वो इसलिए क्योंकि जब बाजार तेज़ी से बढ़ रहा हो, तो एक्सपर्ट्स कहते हैं कि स्मॉल-कैप में निवेश से बचें क्योंकि ये बाजार गिरने पर सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं और जब बाजार गिरता है, तो वे सलाह देते हैं कि बाजार स्थिर होने का इंतजार करें.
हालांकि, वोलैटिलिटी खत्म होने का इंतजार अक्सर लंबा हो सकता है. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि स्मॉल-कैप फंड्स में निवेश करने का सही तरीका क्या है?
स्मॉल-कैप फंड्स के पास स्टॉक्स चुनने के लिए बहुत बड़ा दायरा होता है. SEBI के नियमों के अनुसार,
भारत में 5,000 से ज्यादा लिस्टेड कंपनियां हैं. इसका मतलब है कि स्मॉल-कैप फंड्स के पास बड़े और मिड-कैप फंड्स की तुलना में कहीं ज्यादा ऑप्शन होते हैं.
टॉप 250 कंपनियों में पहले से ही लार्ज-कैप, मिड-कैप, फ्लेक्सी-कैप, और मल्टी-कैप फंड्स का पैसा लगा हुआ है. ऐसे में इन कंपनियों में ‘वैल्यू डिस्कवरी’ यानी सस्ते में अच्छे स्टॉक्स ढूंढने के कम अवसर होते हैं. लेकिन ये समस्या स्मॉल-कैप में कम है.
कुछ साल पहले, स्मॉल-कैप कंपनियां अक्सर छोटी और ऐसे बिजनेस होते थे जो ज्यादा इंपोर्टेंट नहीं है. लेकिन अब इस स्पेस में कई क्वालिटी नाम आ चुके हैं. जैसे, दिसंबर 2024 में स्मॉल-कैप कैटेगरी में Apollo Tyres टॉप कंपनी थी, जिसका मार्केट-कैप ₹32,800 करोड़ था.
स्मॉल-कैप लिस्ट में लगभग 300 कंपनियां थीं, जिनका मार्केट-कैप ₹10,000 करोड़ से ज्यादा था.
डेडिकेटेड स्मॉल-कैप फंड्स: स्मॉल-कैप फंड्स में सीधे निवेश करने वाले निवेशकों के लिए ये बेहतर ऑप्शन हैं. फ्लेक्सी-कैप फंड्स में स्मॉल-कैप का अनुपात समय के साथ घट सकता है, खासकर जब बाजार अस्थिर हो. जबकि स्मॉल-कैप फंड्स में आप एक फिक्स्ड अलोकेशन तय कर सकते हैं.
एक्टिव vs पैसिव फंड्स: स्मॉल-कैप में एक्टिव फंड्स बेहतर होते हैं क्योंकि प्रोफेशनल स्टॉक सिलेक्शन स्किल्स की जरूरत होती है. स्मॉल-कैप में कई कंपनियों की गवर्नेंस और बैलेंस शीट कमजोर होती है. अनुभवी फंड मैनेजर्स ही सही स्टॉक्स चुन सकते हैं.
स्मॉल-कैप फंड्स में तब निवेश करना थोड़ा रिस्की हो सकता है जब मार्केट में तेजी हो क्योंकि ये गिरावट के समय सबसे ज्यादा नुकसान झेलते हैं. पिछले 15 सालों में, Nifty Small Cap 250 ने अपने सबसे खराब साल में 41% गिरावट और सबसे अच्छे साल में 136% बढ़त दिखाई है. वहीं इसकी तुलना में, Nifty Midcap 150 ने 32% गिरावट और Nifty100 ने 29% गिरावट झेली है. हालांकि, औसतन, पिछले 15 सालों में स्मॉल-कैप इंडेक्स ने 19.5% का सालाना रिटर्न दिया है, जबकि Nifty100 ने 14%.
हाल के बाजार में, Nifty Small Cap 250 अपने उच्चतम स्तर से लगभग 14% गिर चुका है.
अब भले ही स्मॉल-कैप मिड-कैप की तुलना में बेहतर दांव हो, लेकिन यह पूरी तरह सस्ता नहीं.
अगर आपके पोर्टफोलियो में स्मॉल-कैप फंड्स नहीं हैं, और आप निवेश का फैसला लेते हैं तो SIP यानी सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान से निवेश करना बेहतर ही होगा. आप अपने पैसों को 3 हिस्सों में बांटकर निवेश कर सकते हैं, एक हिस्सा शुरुआत में लगा सकते हैं और बाकी 10-15% और गिरावट पर लगाना बेहतर माना जाता है. स्मॉल-कैप फंड्स को कम से कम 10 साल का समय दें ताकि ये अच्छे रिटर्न दे सकें.
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